Saturday, 29 April 2017

षट्कर्म जल नेती

जल नेति
इसके लिए टोंटी वाले लोटे का प्रयोग होता है! लोटे में नमक मिलकर कुछ हल्का गर्म पानी डालें, जिस नाक में सांस चल रही हो उसे ऊपर करके लोटे की टोंटी को उसमे लगा दे !
मुँह को खोलकर रखें ताकि श्वास मुँह से ली जा सके! लोटे को ऊपर उठायें ताकि पानी नाक में जा सके! पानी एक नासिका से जाकर दूसरी नासिका से बाहर निकलेगा! इसी प्रकार दूसरी नासिका को ऊपर करके उसमे पानी दाल कर पहली नासिका से निकाले! विशेष ध्यान रखे नाक से श्वास बिलकुल नहीं लेना है और मुँह खुला रखना है!
इसके साथ जिस नासिका में टोंटी लगी हो उस नाशिका से धीरे से श्वास अंदर खींचे ताकि लोटे का पानी गले में आ जाए! उसे मुँह के रास्ते बाहर निकाल दे! यही काम दूसरी नासिका को हाथ के अंगूठे से बंद करके भी कर कर सकते है! इसे कई बार करें और दोनों नासिकाओं से करे! ऐसा करने से गले व नाक की अच्छी तरह से सफाई हो जाती है! और कफ पूरी तरह से बाहर हो जाता है! अच्छा अभ्यास हो जाने क बाद इसे गिलास से भी कर सकते है!

जल नेति के बाद भस्त्रिका प्राणायाम अवश्य करें! थोड़ा आगे झुककर गर्दन को दायें-बाएं, ऊपर-निचे घुमाकर भस्त्रिका करें ताकि नाक पूरी तरह साफ़ हो जाए और नाकि में किसी तरफ पानी न रह पाए!

लाभ:
उपरोक्त प्रकार से नेति हो जाने क बाद आप नाक से पानी और दूध पिने का अभ्यास भी कर सकते है! नाक से दूध व पानी पिने का विशेष लाभ है! इसके अभ्यास से मस्तिष्क सम्बन्धी सभी रोग ठीक होते है, बुद्धि तीव्र होती है, अनिद्रा रोग से मुक्ति मिलती है तथा आँख नाक व गले के सभी रोग ठीक होते है! नेत्र ज्योति बढ़ती है!

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