Saturday 29 April 2017

षट्कर्म कुंजल क्रिया (गजकरणी)

कुंजल क्रिया (गजकरणी)
जो लोग धौती नहीं कर सकते वह कुंजल क्रिया करके अमाशय को शुद्ध कर सकते है! इसमें गुनगुने पानी को पि कर वमन(उल्टी) करना होता है! जिस प्रकार हाथी पानी पीकर  अपनी सूंड मुँह में डालकर पिए गए पानी को तुरंत बाहर करता है उसी तरह इस क्रिया को भी करना है!
कुंजल क्रिया खाली पेट करना चाहिए ! किसी दिन दूषित भोजन कर लिया हो या कुछ खा  लेने से घबराहट हो तो अनपचे खाने को बाहर करने के लिए भी इस क्रिया को किया जा सकता है!
 विधि
उत्कटासन में बैठकर २-३ लीटर हल्का गर्म नमक मिला हुआ पानी गटागट पी जाए, फिर खड़े होकर आगे की ओर झुके, दाए हाथ की तर्जनी और मध्यमा उंगली दोनों को गले के आदत तक ले जाकर हिलाये! इससे उलटी आ जायेगी और पानी बाहर निकलेगा! उल्टी आने पर भी उंगलियों को बाहर न निकाले, जीभ को फीर हिलाये और पपनी निकलेगा! ऐसा ३-४ बार करे ताकि सारा पानी बाहर निकल जाए! और तब तक झुके रहना बी बहुत आवश्यक है! अभ्यास हो जाने पर ऊँगली डालने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती!
पानी निकल जाने के बाद सीधे खड़े हो जाए!

लाभ
इससे मंदाग्नि, अजीर्ण, पीलिया, कफ के रोग, रक्त विकार, कृमि, विष विकार, त्वचा रोग आदि दूर होते है!
भूख बढ़ती है पेट साफ़ होता है!
इस क्रिया को स्वस्थ व्यक्ति आरम्भ में १५-२० दिन लगातार करे! बाद में सप्ताह में एक दिन काफी है!

नोट कमज़ोर आंत वालो को, संग्रहणी तथा हृदय रोगियों को यह क्रिया नहीं करनी चाहिए!

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